हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में आवारा कुत्तों का आतंक इस कदर बढ़ चुका है कि अब आम जनता का सड़कों पर चलना भी मुश्किल हो गया है। माल रोड और रिज जैसे पर्यटन स्थलों पर झुंड बनाकर घूमते कुत्ते आए दिन लोगों पर हमला कर रहे हैं। हालात यह हैं कि शुक्रवार को माल रोड पर एक स्कूली बच्ची को आधा दर्जन कुत्तों ने नोंच डाला। सवाल उठता है कि क्या शिमला अब इंसानों की राजधानी है या आवारा कुत्तों का अड्डा? और सबसे बड़ा सवाल – प्रशासन आखिर कब नींद से जागेगा?
शिमला (HD News): हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला, जिसे "क्वीन ऑफ हिल्स" कहा जाता है, आज आवारा कुत्तों के आतंक से कराह रही है। रिज और माल रोड जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल अब सैलानियों और आम जनता के लिए दहशतगाह बन चुके हैं। झुंड के झुंड आवारा कुत्ते हर वक्त सड़कों पर मंडराते हैं और मौका मिलते ही लोगों पर हमला कर देते हैं। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि शहरवासी दिन-रात डर के साये में जी रहे हैं।
बच्ची पर झुंड का हमला – बाल-बाल बची जान
शुक्रवार को माल रोड पर घटी घटना ने नगर निगम की पोल खोल दी। एक स्कूली बच्ची पर अचानक आधा दर्जन आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया। देखते ही देखते मासूम की चीखें गूंज उठीं और कुत्ते उसकी टांगों को नोचने लगे। आसपास मौजूद लोगों ने हिम्मत दिखाते हुए बच्ची को कुत्तों के चंगुल से छुड़ाया, लेकिन तब तक उसके पैरों पर गंभीर जख्म हो चुके थे। घायल बच्ची को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। यह हादसा इस बात का गवाह है कि शिमला की सड़कें अब बच्चों और महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रहीं।

रोजाना 2–3 नए मामले, निगम सिर्फ कागजों पर सक्रिय
यह कोई इकलौती घटना नहीं है। प्रतिदिन रिज और माल रोड पर 2 से 3 लोग कुत्तों का शिकार बनते हैं। नगर निगम बार-बार दावा करता है कि सभी कुत्तों का एंटी-रेबीज़ टीकाकरण हो चुका है, लेकिन आंकड़े और घटनाएं कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। सवाल यह उठता है कि जब हर दिन लोग अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, तो निगम के ये दावे किस काम के? जनता को सुरक्षा चाहिए, खोखले वादे नहीं।
पर्यटन नगरी या आवारा कुत्तों का अड्डा ?
शिमला को हर साल लाखों पर्यटक देखने आते हैं। लेकिन जिस माल रोड पर लोग घूमने और सुकून लेने आते हैं, वहीं अब कुत्तों का आतंक है। झुंड बनाकर ये आवारा कुत्ते राहगीरों पर टूट पड़ते हैं और प्रशासन मूकदर्शक बना बैठा है। ऐसे हालात में पर्यटन उद्योग पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है। यह स्थिति न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि शिमला की साख पर भी गहरा धब्बा है।
लोगों का गुस्सा, निगम पर सवाल
शहरवासियों का कहना है कि नगर निगम सिर्फ प्रेस विज्ञप्तियों और मीटिंगों तक सीमित है। जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। लोग साफ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर प्रशासन ने अब भी आंखें नहीं खोलीं, तो मजबूरन वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। जनता का गुस्सा अब उबाल पर है।
नगर निगम की लापरवाही अब जानलेवा रूप ले चुकी है। जब राजधानी की सड़कों पर स्कूली बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं, तो प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठते हैं। क्या प्रशासन को इतने खून और चीखें भी जगा नहीं सकतीं? कागजों पर बैठकों और योजनाओं से जनता को राहत नहीं मिलने वाली। समय आ गया है कि निगम सिर्फ दिखावे से बाहर निकले और कड़े कदम उठाकर शिमला को आवारा कुत्तों के आतंक से मुक्त करे। वरना जनता को मजबूर होकर यह सवाल पूछना पड़ेगा – शिमला पर शासन किसका है? इंसानों का या आवारा कुत्तों का?