ब्रिटिशकालीन शिमला, जिसे कभी खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण और योजनाबद्ध संरचना के लिए चुना गया था, आज अपनी विरासत और सुरक्षा के संरक्षण के लिए निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। शहर की ऐतिहासिक इमारतें अपनी मजबूती और वास्तुकला के लिए समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं, और ये हमारी स्मृति और संस्कृति की धरोहर बनी हुई हैं। हालांकि, बढ़ती आबादी और अनियोजित निर्माण शहर को चुनौतियों से सामना करवा रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों और अधिकारियों द्वारा सुझाए गए ठोस कदमों और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से शिमला को सुरक्षित, सुव्यवस्थित और हरित स्वरूप में विकसित किया जा सकता है। यह वही मौका है जब शिमला अपनी समृद्ध विरासत को बचाते हुए भविष्य के लिए सुरक्षित और स्मार्ट शहर बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकता है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला (HD News): कभी अंग्रेजों ने जिसे अपनी सुरक्षा और आरामदायक आबोहवा के लिए चुना था, आज वही शिमला अपनी अनियोजित वृद्धि और अव्यवस्थित निर्माण के कारण रहने के लिए असुरक्षित बनता जा रहा है। ब्रिटिशकालीन भवन अब भी मजबूती से खड़े हैं और उनकी वास्तुकला सदीयों बाद भी अपनी मजबूती का परिचय देती है। लेकिन नई बहुमंजिला इमारतें, जो बिना किसी नियोजन और मानक के बनाई जा रही हैं, लगातार धराशायी हो रही हैं। यह शहर अब अपनी प्राकृतिक और संरचनात्मक सीमाओं से परे बढ़ रहा है और बढ़ती आबादी और अव्यवस्थित विकास का बोझ सहने में असफल होता दिख रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर
जनसंख्या का दबाव और अव्यवस्थित निर्माण
1881 की ब्रिटिश जनगणना में शिमला की आबादी मात्र 13, 605 थी, जो अब बढ़कर लगभग 2, 50, 000 हो चुकी है। इसका मतलब यह है कि शहर अब अपनी वास्तविक क्षमता से कई गुना अधिक बोझ उठाने को मजबूर है। अंग्रेजों ने शहर को नियोजित और व्यवस्थित तरीके से बसाया था। भवनों को कम ऊँचाई के और आंगनों को खुला रखते हुए व्यवस्थित ढंग से बनाया गया था। नालों और खड्डों का सही प्रवाह सुनिश्चित किया गया था ताकि पानी कहीं रुके नहीं और आपात स्थिति में सड़क मार्ग खुले रहें। आज हालात इसके विपरीत हैं। हर जगह मकान आपस में सटे हुए हैं, नालों के लिए जगह नहीं बची है, और किसी आपात स्थिति में आवाजाही भी मुश्किल हो गई है।

आपदाओं से मिली चेतावनी, फिर भी लापरवाही
अगस्त 2023 की भारी बारिश ने शिमला को कड़वी सीख दी। समरहिल के शिव बावड़ी मंदिर पर मलबा गिरने से 21 लोगों की जान चली गई। बस स्टैंड के पास कृष्णानगर में नगर निगम के स्लाटर हाउस समेत आठ मकान भरभरा कर गिर गए। शहर के विभिन्न हिस्सों में लगातार भूस्खलन और जमीन धंसने की घटनाएं हुईं। इसके बावजूद, निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करने और शहरी नियोजन को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि शिमला सिस्मिक जोन-4 में आता है, और किसी भी तेज भूकंपीय झटके से शहर में व्यापक तबाही हो सकती है।
65 फीसदी भवन उच्च संवेदनशील श्रेणी में
यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार, शिमला नगर निगम क्षेत्र के लगभग 65 फीसदी भवन उच्च संवेदनशील श्रेणी में हैं। भूस्खलन के जोखिम को लेकर 51 प्रतिशत क्षेत्र मध्यम और 33 प्रतिशत क्षेत्र उच्च जोखिम श्रेणी में आता है। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि शहर संरचनात्मक और प्राकृतिक खतरे दोनों के प्रति बेहद संवेदनशील है।
विशेषज्ञों और अधिकारियों की चेतावनी
पूर्व आईएएस अधिकारी श्रीनिवास जोशी, जिनका जन्म 1936 में शिमला में हुआ था, कहते हैं – “शहर का वर्तमान विकास मॉडल पूरी तरह अवैज्ञानिक है। शिमला कभी पैदल चलने वालों का शहर था और इसे भविष्य में भी उसी स्वरूप में बनाए रखना चाहिए। हेरिटेज जोन के मूल स्वरूप को बचाए रखना बेहद जरूरी है। आज की वाहनों की भीड़ ने पैदल चलना असुरक्षित कर दिया है।”
नगर एवं ग्राम नियोजन मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि शहरी क्षेत्रों की सैटेलाइट आधारित जीआईएस मैपिंग की जाएगी। इसके लिए स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर क्षेत्र आधारित योजना तैयार की जाएगी। मंत्री ने स्पष्ट किया – “नियम बनाने के साथ-साथ उन्हें लागू करना भी महत्वपूर्ण है। इसके लिए आम जनता का सहयोग बेहद जरूरी है।”
रिटेंशन पॉलिसियों की विफलता
शिमला में अनधिकृत भवनों को नियमित करने के लिए बार-बार रिटेंशन पॉलिसी लाई गई, लेकिन ये नीतियां समस्या का स्थायी समाधान नहीं बन सकीं।
2009: प्लानिंग व स्पेशल एरिया के अनधिकृत भवनों को नियमित करने की नीति।
2016: करीब 15, 000 अनधिकृत भवनों को ‘जहां हैं जैसे हैं’ के आधार पर वैध बनाने का प्रयास।
2019: नक्शे स्वीकृत न होने पर भवनों को नियमित करने की अधिसूचना।
2023: एटीक फ्लोर को वैध बनाने की अनुमति।
2025: नगर निगम ने नई वन टाइम सेटलमेंट नीति पास की।
इन कदमों के बावजूद, शहर में अनियोजित निर्माण और अवैध अतिक्रमण रोकने में प्रशासन असफल साबित हुआ है।
कब्रगाह पर कब्ज़ा और अवैध निर्माण
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता देवेन खन्ना के अनुसार, 200 साल पुरानी कनलोग समिट्री में कब्रें खोदकर टिन के 14 अवैध ढांचे खड़े कर दिए गए। यह क्षेत्र हेरिटेज जोन में आता है, जहां निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित है। प्रशासन की नाकामी के कारण अंततः हाईकोर्ट को अतिक्रमण हटाने के निर्देश देने पड़े।
भविष्य की राह
वयोवृद्ध इंजीनियर आरएस जस्टा कहते हैं - “ब्रिटिश काल में भवनों की ऊँचाई सीमित थी और हर निर्माण नियोजित था। अब बहुमंजिला इमारतें अनियोजित तरीके से खड़ी हो रही हैं। नालों और पानी के बहाव के लिए जगह नहीं छोड़ी गई। शिमला भूकंप के प्रति संवेदनशील है। शहर को सुरक्षित बनाने और भीड़ को कम करने के लिए जाठिया देवी में सैटेलाइट टाउन बसाना बेहद जरूरी है।”
अंग्रेजों ने शिमला को योजनाबद्ध तरीके से बसाया और उसकी विरासत आज भी मजबूती से खड़ी है। लेकिन मौजूदा दौर का अवैज्ञानिक और अनियंत्रित विकास शहर की नींव को हिला रहा है। विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की चेतावनियां साफ संकेत देती हैं कि यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो कोई भी आपदा शिमला की तस्वीर को और भी भयावह बना सकती है। शिमला की विरासत और सुरक्षा दोनों के लिए सख्त नियोजन, नियमन और प्रवर्तन की अब तुरंत आवश्यकता है।