शिमला के बहुचर्चित युग हत्याकांड मामले में हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जिला अदालत द्वारा तीनों दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा को बदलते हुए अदालत ने दो दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि एक आरोपी को बरी कर दिया गया है। हालांकि, मासूम युग के परिजनों ने फैसले पर गहरी नाराज़गी जताई है और अब सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाने का ऐलान किया है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला (HD News): बहुचर्चित युग हत्याकांड मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जिला अदालत द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को हाईकोर्ट ने दो दोषियों के लिए उम्रकैद में बदल दिया है, जबकि एक आरोपी को बरी कर दिया गया। फैसले से नाराज़ परिजनों ने कहा है कि वे अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे और दोषियों को फांसी दिलाने की मांग करेंगे।
हाईकोर्ट का फैसला
विशेष खंडपीठ के न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश राकेश कैंथला ने शुक्रवार को अपना निर्णय सुनाते हुए, जिला अदालत के फांसी की सजा संबंधी फैसले को आंशिक रूप से पलट दिया। कोर्ट ने दोषी चंद्र शर्मा और विक्रांत बख्शी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है, जबकि तीसरे आरोपी तजेंद्र पाल को बरी कर दिया गया।
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परिजनों का आक्रोश
मासूम युग के पिता विनोद गुप्ता ने कहा कि 11 वर्ष बीत जाने के बाद भी न्याय अधूरा है। उन्होंने कहा, “मेरे बेटे को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया गया, लेकिन आज भी दोषी जिंदा हैं। उन्हें फांसी दी जानी चाहिए थी। हम सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाएंगे और तुरंत फांसी की सजा की मांग करेंगे।”

11 साल पुराना दर्दनाक मामला
14 जून 2014 को शिमला के राम बाजार से 4 वर्षीय युग का अपहरण किया गया था।
अपहरणकर्ताओं ने युग के पिता से साढ़े तीन करोड़ रुपये फिरौती की मांग की थी।
अगस्त 2016 में भराड़ी स्थित पेयजल टैंक से युग का कंकाल बरामद हुआ।
जांच में सामने आया कि आरोपियों ने मासूम के शरीर पर पत्थर बांधकर उसे जिंदा पानी से भरे टैंक में फेंक दिया था।
अदालत की कार्यवाही
सीआईडी ने 25 अक्टूबर 2016 को इस मामले की चार्जशीट अदालत में पेश की। 20 फरवरी 2017 से ट्रायल शुरू हुआ और 6 सितंबर 2018 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश शिमला की अदालत ने चंद्र शर्मा, विक्रांत बख्शी और तजेंद्र पाल को फांसी की सजा सुनाई थी। अदालत ने इस अपराध को “दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी” में माना था।
अब अगला पड़ाव सुप्रीम कोर्ट
हाईकोर्ट के इस फैसले ने परिजनों को निराश किया है। उनका कहना है कि युग के हत्यारों को उम्रकैद नहीं बल्कि फांसी मिलनी चाहिए थी। अब परिजन न्याय की अंतिम उम्मीद के तौर पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे।
युग हत्याकांड का यह फैसला एक बार फिर से न्याय व्यवस्था और सजा के पैमानों पर गहन बहस को जन्म देता है। जहाँ अदालत ने कानून और साक्ष्यों के आधार पर फांसी को उम्रकैद में बदला है, वहीं मासूम युग के परिजनों का मानना है कि इतनी निर्दयी वारदात के दोषियों को फांसी की सजा ही न्याय होता। अब परिजन सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या देश की सर्वोच्च अदालत मासूम युग को उसके परिवार की नज़र में न्याय दिला पाती है या नहीं।