हिमाचल प्रदेश में बिजली सब्सिडी को लेकर अब बड़ी सर्जरी होने जा रही है। सरकार और बिजली बोर्ड ने सब्सिडी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए सख्त कदम उठाने की तैयारी कर ली है। अब किसी भी उपभोक्ता को केवल दो बिजली मीटरों तक ही मुफ्त बिजली सब्सिडी का लाभ मिलेगा, जबकि तीसरे या अधिक मीटरों पर उपभोक्ताओं को सामान्य दरों पर बिल चुकाना होगा। यह फैसला उन लोगों पर सीधा वार है जो एक ही परिवार या व्यक्ति के नाम पर कई कनेक्शन लेकर हर मीटर पर 125 यूनिट फ्री बिजली का लाभ उठा रहे थे। सरकार का मकसद साफ है - “सब्सिडी हकदार को, न कि अमीर को।” पढ़ें विस्तार से..
शिमला (HD News): हिमाचल प्रदेश में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को दी जा रही सब्सिडी व्यवस्था में अब बड़ा बदलाव होने जा रहा है। प्रदेश बिजली बोर्ड ने एक अहम प्रस्ताव तैयार किया है जिसके तहत किसी भी उपभोक्ता को केवल दो बिजली मीटरों तक ही सब्सिडी का लाभ दिया जाएगा। सरकार की मंजूरी मिलते ही यह नई व्यवस्था पूरे प्रदेश में लागू कर दी जाएगी। इस फैसले का उद्देश्य है - सब्सिडी का दुरुपयोग रोकना, फर्जी लाभार्थियों पर लगाम लगाना और वास्तविक जरूरतमंदों तक ही सरकारी सहायता सुनिश्चित करना।

अब केवल दो मीटरों पर ही मिलेगी मुफ्त बिजली की राहत
प्रदेश में लंबे समय से देखा जा रहा था कि कई उपभोक्ताओं के नाम पर दो से अधिक बिजली मीटर दर्ज हैं। इन परिवारों को हर कनेक्शन पर प्रति माह 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिल रही थी, जिससे राज्य सरकार को हर साल करोड़ों रुपये का अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा था। बिजली बोर्ड ने जब इस स्थिति का विश्लेषण किया तो पाया कि एक ही व्यक्ति या परिवार ने कई जगहों पर कनेक्शन ले रखे हैं और सभी पर सब्सिडी का लाभ लिया जा रहा है।
अब नई व्यवस्था में ऐसे उपभोक्ताओं को केवल दो मीटरों तक ही सब्सिडी मिलेगी, जबकि तीसरे या अधिक मीटरों पर बिजली की सप्लाई सामान्य (नॉन-सब्सिडाइज्ड) दरों पर दी जाएगी। इससे सब्सिडी का लाभ केवल वास्तविक जरूरतमंदों तक सीमित रहेगा। बोर्ड ने प्रारंभिक स्तर पर यह प्रस्ताव रखा था कि एक परिवार को केवल एक मीटर पर ही सब्सिडी दी जाए, लेकिन प्रदेश के ग्रामीण इलाकों, संयुक्त परिवारों और साझा मकानों की परिस्थितियों को देखते हुए अब इसे दो मीटरों तक सीमित करने का निर्णय लिया गया है।

प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं पर पड़ेगा सीधा असर
हिमाचल प्रदेश में फिलहाल 22 लाख से अधिक घरेलू उपभोक्ता हैं, जिनमें हजारों उपभोक्ता ऐसे हैं जिनकी मासिक खपत 125 यूनिट से कम है। ये उपभोक्ता फिलहाल पूरी तरह से मुफ्त बिजली का लाभ उठा रहे हैं। सरकार हर वर्ष इस मद में सैकड़ों करोड़ रुपये का सब्सिडी भार वहन करती है। नई नीति के तहत अब बिजली मीटरों को आधार नंबरों से जोड़ा जा रहा है, ताकि एक उपभोक्ता के नाम पर कई कनेक्शन का पता चल सके और डुप्लिकेट या फर्जी सब्सिडी लेने वालों की पहचान की जा सके।
बिजली बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, प्रस्ताव लागू होने के बाद इस प्रकार की अनियमितताओं पर स्वाभाविक रूप से अंकुश लगेगा। इसका उद्देश्य किसी की सुविधाएं छीनना नहीं, बल्कि राज्य के सीमित संसाधनों का न्यायसंगत और पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित करना है, ताकि सहायता उन्हीं लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी वास्तविक जरूरत है।

🏠 शहरों में किराएदार व मकान मालिकों की बढ़ेगी चिंता
नई व्यवस्था से सबसे ज्यादा असर शहरी इलाकों के मकान मालिकों, फ्लैट किराएदारों और झुग्गी मालिकों पर पड़ने वाला है। राजधानी शिमला, धर्मशाला, सोलन, मंडी और बिलासपुर जैसे शहरों में बड़ी संख्या में मकान मालिकों ने अपने नाम पर कई मीटर लगवा रखे हैं। वे इन कनेक्शनों से अलग-अलग किरायेदारों को बिजली सप्लाई करते हैं। अब जब तीसरे मीटर पर सब्सिडी नहीं मिलेगी, तो उन्हें बिजली बिलों में सीधा आर्थिक झटका लगेगा।
इसी तरह, मैदानी जिलों - विशेषकर औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास के भूमि मालिकों ने मजदूरों या किरायेदारों के लिए झुग्गियां बना रखी हैं और उनके मीटर अपने नाम पर ही हैं। अब ऐसी स्थिति में तीसरे या चौथे कनेक्शन पर सब्सिडी समाप्त हो जाएगी, जिससे उनके बिजली बिलों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी। इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से किराएदारों पर भी पड़ सकता है, क्योंकि मकान मालिक बढ़े हुए खर्च को किराए में जोड़ने की कोशिश कर सकते हैं।
सरकार की मंशा - सब्सिडी केवल असली जरूरतमंदों को
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस नीति का उद्देश्य किसी उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि सब्सिडी की व्यवस्था को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है। बिजली सब्सिडी का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत देना था, लेकिन वर्षों से इसका लाभ उन लोगों तक भी पहुंच रहा था जिनकी आय स्थिर और पर्याप्त है।
नई नीति लागू होने के बाद सरकार को हर साल करोड़ों रुपये की बचत होने की उम्मीद है, जिसे प्रदेश के विकास कार्यों और बिजली ढांचे को सुदृढ़ करने में खर्च किया जा सकेगा। साथ ही, यह नीति उपभोक्ता डेटा को आधार से जोड़कर व्यवस्था में डिजिटल ट्रांसपेरेंसी भी लाएगी।

मुख्यमंत्री की अपील का असर
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू लगातार यह अपील कर रहे हैं कि जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं, वे स्वेच्छा से बिजली सब्सिडी छोड़ दें ताकि राज्य आत्मनिर्भर बन सके। मुख्यमंत्री स्वयं अपने नाम पर लगी मीटरों की सब्सिडी पहले ही त्याग चुके हैं। उनके इस कदम के बाद अब तक 28, 203 उपभोक्ता स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ चुके हैं, जिनमें 13, 927 सरकारी कर्मचारी, 11, 131 पेंशनर और 3, 775 सामान्य उपभोक्ता शामिल हैं।
यह आंकड़ा बताता है कि प्रदेश में लोगों में भी सामाजिक जिम्मेदारी और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ रही है। अब सरकार चाहती है कि यह कदम नीति रूप में लागू होकर व्यवस्था को और पारदर्शी बनाया जाए।
नतीजा साफ है - हिमाचल प्रदेश सरकार की यह नई नीति न केवल वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता स्थापित करने की दिशा में कदम है, बल्कि यह एक साहसिक सुधारात्मक पहल भी है जो वर्षों से चली आ रही सब्सिडी के दुरुपयोग की जड़ पर वार करती है। विरोध की आवाज़ें उठना स्वाभाविक है, लेकिन मूल प्रश्न यही है - क्या राज्य उस व्यवस्था को जारी रखे जिसमें कुछ लोग सार्वजनिक संसाधनों पर अनुचित कब्जा जमाए रहें जबकि असली जरूरतमंद पीछे रह जाएं?
हकीकत यह है कि प्रदेश और देश दोनों में “मुफ्तखोरी की राजनीति” एक स्थायी रोग बन चुकी है। फ्री राशन, फ्री बिजली, फ्री पानी — ये सब जनसेवा नहीं, बल्कि सत्ता हथियाने की रणनीति बन गए हैं। हिमाचल में भी कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया था, जबकि पहले से 125 यूनिट फ्री बिजली बीजेपी सरकार की योजना के तहत दी जा रही थी। अब विडंबना यह है कि 300 यूनिट के वादे से पीछे हटकर सरकार 125 यूनिट तक की सब्सिडी पर भी नियम कसने की तैयारी में है।
नई व्यवस्था से सबसे ज्यादा असर शहरी इलाकों और मकान मालिकों पर पड़ेगा, जहां एक ही व्यक्ति के नाम पर दर्जनों किराएदारों के मीटर लगे हैं। सब्सिडी सीमित होने के बाद अब ये उपभोक्ता सामान्य दरों पर बिल चुकाएंगे - यानी जेब ढीली होगी, लेकिन व्यवस्था मजबूत बनेगी।
अंततः यह कदम हिमाचल के ऊर्जा क्षेत्र में जवाबदेही और संतुलन की नई शुरुआत है। यह नीति यह स्पष्ट संदेश देती है - “संसाधन सीमित हैं, पारदर्शिता अनिवार्य है और सब्सिडी केवल उन्हीं को मिलेगी जो सब्सिडी के असली हकदार हैं।”

बता दें कि बिजली उत्पादक राज्य होने के नाते हिमाचल प्रदेश के निवासियों को सस्ती बिजली मिलने का अधिकार है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मुफ्तखोरी की कोई गुंजाइश हो। चुनावी भाषणों में मुफ्तखोरी का प्रलोभन देने वालों से दूरी बनाए रखना ही ठीक है। यह न केवल आर्थिक दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि नागरिकों के हित और राज्य की स्थिरता को भी सुनिश्चित करता है।