सड़कों को आमजन की भाग्यरेखा कहा जाता है, क्योंकि इन्हीं से गांवों में विकास, रोजगार और सुविधा के नए रास्ते खुलते हैं। लेकिन जब निर्माण कार्य में लापरवाही बरती जाए या व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए किसी और की मेहनत, संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुँचाया जाए, तो यही विकास का मार्ग विवाद, अव्यवस्था और असंतोष की वजह बन जाता है। किसी भी सड़क या सार्वजनिक परियोजना का असली उद्देश्य तभी पूरा होता है, जब वह सामूहिक हित को ध्यान में रखकर, पारदर्शिता और जिम्मेदारी के साथ पूरी की जाए। वहीं जब निर्माण प्रक्रिया सही तरीके से न की जाए, तो विकास के बजाय विवाद और नुकसान ही सामने आते हैं। पढ़ें पूरी खबर..
अर्की (सोलन), हिमाचल प्रदेश - कुंहर पंचायत के लडोग वार्ड में सड़क निर्माण को लेकर बड़ा विवाद अब गंभीर रूप ले चुका है। ग्रामीणों का आरोप है कि कुलदीप कुमार द्वारा अपने घर तक सड़क बनाने के लिए सरकारी वन भूमि में बिना अनुमति सड़क निर्माण कार्य शुरू किया गया, जिससे आसपास की निजी भूमि को भारी नुकसान पहुंचा है। स्थानीय लोगों ने इसे प्रशासनिक उदासीनता और निर्माण कार्य में बरती जा रही खतरनाक लापरवाही का परिणाम बताया है।
ग्रामीणों ने राजस्व अधिकारी, तहसील अर्की को लिखित शिकायत सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि निर्माण कार्य के दौरान निकली भारी मात्रा में मिट्टी और पत्थर सीधे बसंत ठाकुर, हेतराम ठाकुर और अन्य ग्रामीणों की निजी कृषि भूमि से लगते नाले में फेंक दिए गए। इससे उनकी जमीन, बाड़बंदी और बगीचे को गंभीर क्षति हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि निर्माण कार्य में किसी भी प्रकार के तकनीकी मानक या सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया गया।

शिकायत के अनुसार सड़क निर्माण का मलबा पास के नाले में भर गया, जिससे नाला पूरी तरह बंद हो गया है। ग्रामीणों को आशंका है कि बरसात के मौसम में नाले का पानी बहाव बदलकर उनके खेतों में घुस सकता है, जिससे कटाव, बहाव और भारी आर्थिक नुकसान की संभावना बढ़ गई है। यह न केवल निजी संपत्ति को खतरा है बल्कि सार्वजनिक जल प्रबंधन प्रणाली के लिए भी बड़ा संकट है।
सबसे अधिक प्रभावित चढ़ी निवासी बसंत ठाकुर ने बताया कि उनकी भूमि में लगाए गए लगभग 50 देवदार के पौधे मलबे में दफन होकर नष्ट हो चुके हैं। साथ ही, खेतों की सुरक्षा हेतु बनाई गई कंटीली तार की बाड़बंदी भी टूट गई है, जिससे अब जंगली जानवरों द्वारा नुकसान का खतरा और अधिक बढ़ गया है। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क निर्माण के लिए कोई अनुमति प्रक्रिया, वन विभाग की मंजूरी या राजस्व विभाग का सर्वेक्षण नहीं कराया गया।

“हमने रोका, लेकिन किसी ने बात नहीं मानी”—ग्राम पंचायत प्रधान और वार्ड मेंबर भी स्थल पर गए, फिर भी नहीं रुका निर्माण
ग्रामवासियों ने निर्माण कार्य में हो रही अनियमितताओं को रोकने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों को भी बुलाया। इस पर ग्राम पंचायत प्रधान निशा और वार्ड सदस्य मौके पर पहुंचे। पंचायत प्रधान निशा ने बताया - “हमें ग्रामीणों ने सड़क निर्माण में हो रही लापरवाही रोकने के लिए बुलाया। हम मौके पर पहुंचे और निर्माण करवा रहे लोगों से तुरंत काम रोकने को कहा। लेकिन वहाँ मौजूद लोगों ने हमारी भी एक न सुनी और वे लापरवाही से निर्माण आगे बढ़ाते रहे।”
प्रधान की इस प्रतिक्रिया से साफ होता है कि सड़क निर्माण कार्य बिना किसी प्रशासनिक अनुमति और पंचायत की जानकारी के जारी रखा गया और स्थानीय प्रतिनिधियों की निर्देशों को भी अनदेखा किया गया।
वन विभाग की प्रतिक्रिया - RO अर्की का निरीक्षण, भूमि की प्रकृति स्पष्ट करने को राजस्व विभाग को पत्र -
ग्रामीणों द्वारा भेजी गई शिकायत की प्रति वन विभाग को भी भेजी गई, जिसके बाद रेंज ऑफिसर (RO) अर्की, अशोक कुमार ने स्थल का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद उन्होंने बताया: “मैं निर्माण स्थल पर गया था और क्षेत्र का सर्वे किया है। लेकिन सड़क वन भूमि पर बनी है या निजी भूमि पर - यह पूरी तरह स्पष्ट करने के लिए राजस्व विभाग द्वारा सीमांकन आवश्यक है। हमने इस संबंध में राजस्व विभाग को पत्र लिखा है ताकि भूमि की वास्तविक स्थिति निर्धारित हो सके।”

यह पूरा घटनाक्रम स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मामला अब वन विभाग और राजस्व विभाग - दोनों के संयुक्त जांच क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है। भूमि की प्रकृति, निर्माण की वैधता और हुए नुकसान की जिम्मेदारी तय करने के लिए विभागीय कार्रवाई अब अनिवार्य हो गई है।
ग्रामीणों की मांग - निरीक्षण, बहाली और पूर्ण मुआवजा
ग्रामीणों ने राजस्व अधिकारी से जोर देकर मांग की है कि स्थल का तत्काल निरीक्षण कराया जाए, प्रभावित नाले और जमीन को यथावत स्थिति में बहाल किया जाए, निजी संपत्ति को हुए संपूर्ण नुकसान की कानूनी भरपाई दिलवाई जाए, और अवैध तरीके से किए गए निर्माण पर तुरंत रोक लगाकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
प्रशासन की अग्निपरीक्षा, ग्रामीणों की निगाहें टिकीं
लडोग का यह विवाद ग्रामीण इलाकों में बढ़ती अवैध निर्माण प्रवृत्ति, प्रशासनिक निगरानी की कमजोरी और पर्यावरणीय संवेदनशीलता की अनदेखी का तीखा संकेत है। अब यह प्रकरण राजस्व विभाग, वन विभाग और पंचायत - तीनों की जवाबदेही और समन्वय की असली परीक्षा बन चुका है।
ग्रामीणों की निगाहें अब राजस्व विभाग की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विभाग इस मामले को केवल एक शिकायत की तरह देखता है या इसे स्थानीय न्याय, भूमि संरक्षण और प्रशासनिक पारदर्शिता की कसौटी मानकर प्रभावी कार्रवाई करता है।
⚠️ डिस्क्लेमर - यह रिपोर्ट स्थानीय ग्रामीणों, पंचायत प्रतिनिधियों और संबंधित विभागों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। घटनाओं, आरोपों और दावों की सत्यता की पुष्टि संबंधित प्रशासनिक और विभागीय जांच के बाद ही स्पष्ट होती है। मीडिया का उद्देश्य केवल तथ्यात्मक जानकारी और जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को प्रस्तुत करना है।