फिल्मों में विद्युत जामवाल को दस साल हो रहे हैं मगर वह अभी तक भरोसेमंद साबित नहीं हो पाए हैं. कमांडो टाइप ऐक्शन छवि में वह एक दशक से कैद हैं. एक ही ट्रेक पर चलने का नतीजा यह कि सफलता उनसे दूर है. सिनेमाघरों के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी उनकी यही स्थिति है. जी5 पर यारा (निर्देशकः तिग्मांशु धूलिया) के पंद्रह दिन बाद उनकी दूसरी फिल्म खुदा हाफिज डिज्नी-हॉटस्टार पर आई है पंरतु परिणाम वही, ढाक के तीन पात. खुदा हाफिज शुरू जरूर ऐसे अंदाज में होती है कि इस बार विद्युत कुछ करेंगे या निर्देशक ने उनसे अलग ढंग का काम लिया होगा. मगर ऐसा हो नहीं पाता. 2008 में आई मंदी के दिनों की यह कहानी शुरुआत में हमें आज की ढहती अर्थव्यवस्था में जाती नौकरियों के संकट से जोड़ती है. लगता है कि यहां कुछ ऐसा होगा जो हमारे समय की नब्ज पर हाथ रखेगा परंतु जल्दी की कहानी हमें एक काल्पनिक देश नोमान में ले जाती और वहां दूसरा ही खेल शुरू हो जाता है.