अर्की: 9 जुलाई; (HD News); हिमाचल प्रदेश के अर्की नागरिक अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही एक मासूम की मौत का कारण बन गई। प्रसव के दौरान डॉक्टर की अनुपस्थिति, प्रशिक्षित स्टाफ की कमी और वक्त पर सिजेरियन न करने के चलते एक नवजात शिशु ने दम तोड़ दिया। परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं।
जिम्मेदार कौन ? अस्पताल या सरकार ?
कश्लोग निवासी हरीश कुमार ने बताया कि 30 जून को उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी रश्मि को अर्की अस्पताल में भर्ती कराया था। 1 जुलाई को जब रश्मि को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो उसे लेबर रूम ले जाया गया लेकिन वहां कोई डॉक्टर ही मौजूद नहीं था ! नर्सें प्रसव करवा रही थी और बच्चे को जबरन खींचने लगीं। खींचतान में बच्चे की गर्दन नीली पड़ गई और रश्मि बेहोश हो गई।

करीब 5 घंटे तक डॉक्टर नदारद रहे। जब तक डॉक्टर आए, तब तक देर हो चुकी थी। माँ और बच्चा दोनों की हालत गंभीर हो चुकी थी। आनन-फानन में उन्हें ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया और बाद में आईजीएमसी शिमला रेफर किया गया। लेकिन छह दिन तक ज़िंदगी और मौत से जूझने के बाद मासूम की मौत हो गई।
आईजीएमसी के डॉक्टरों ने भी मानी लापरवाही
हरीश कुमार का दावा है कि IGMC में डॉक्टरों ने स्पष्ट कहा कि समय पर सिजेरियन न करने और खींचतान के चलते बच्चे की जान गई। ये सीधा-सीधा मेडिकल नेगलिजेंस का मामला है, जो सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था की पोल खोलता है।
एसडीएम ने माना मामला गंभीर
कार्यकारी एसडीएम विपिन वर्मा ने पुष्टि की कि यह गंभीर मामला उनके संज्ञान में आया है और थाना अर्की को जांच के आदेश दिए गए हैं। सवाल यह है कि क्या केवल जांच से इस परिवार को न्याय मिलेगा?
बीएमओ ने साधी चुप्पी
खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. मुक्ता रस्तोगी ने मामले पर अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि जांच के बाद ही वे कुछ स्पष्ट कह सकेंगी।
एक मासूम की मौत ने सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोलकर रख दी है। डॉक्टर की अनुपस्थिति और समय पर सिजेरियन न कराने जैसी लापरवाहियों ने जच्चा-बच्चा की ज़िंदगी से सीधा खिलवाड़ किया। अब देखने वाली बात यह है कि क्या सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस पर कोई सख्त कार्रवाई करेंगे, या यह मामला भी जांच की आड़ में ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?