🌾 सोलन जिला में “अर्की उपमंडल के किसान खून-पसीना बहाकर खेतों में मक्की बोते हैं, लेकिन फसलें उनके घर तक पहुँचने से पहले ही जंगली जानवरों के पेट में चली जाती हैं। नतीजा - किसान का सपना उजड़ता है और उसका भविष्य अंधेरे में डूब जाता है। बुईला, सरयांज और आसपास के गांवों में आज यही हकीकत है, जहाँ सूअर, बंदर, लंगूर, नीलगाय और बारहसिंगा दिन-रात मेहनतकश किसानों की रोज़ी-रोटी पर हमला कर रहे हैं।” 🌾 पढ़े विस्तार से..
अर्की (HD News): अर्की उपमंडल के बुईला, सरयांज, मनोल, पट्टा और क्वालग सहित कई गांवों में जंगली जानवरों का आतंक चरम पर है। किसानों की महीनों की मेहनत कुछ ही दिनों में तबाह हो गई है। रातों-रात जंगली सूअर, बंदर, लंगूर, नीलगाय और बारहसिंगा फसलों को रौंद डालते हैं, जिससे किसानों का जीना दूभर हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि खेती अब घाटे का सौदा बन गई है और यदि हालात नहीं सुधरे तो लोग खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे।

बीती रात को किसान के तबाह हुए खेत की ताजा तस्वीर
गांव क्वालग के किसान जगदीश चंद ने बताया - “हमने दिन-रात मेहनत करके मक्की बोई थी। अब बन्दरों व लंगूरों ने सब बर्बाद कर दिया। परिवार का गुजारा इसी फसल पर निर्भर था। अब समझ नहीं आ रहा कि बच्चों का पेट कैसे भरेंगे।”
उन्होंने आगे कहा कि लंगूरों ने न सिर्फ मक्की बल्कि ककड़ और बीयुअल के पेड़ भी तहस-नहस कर दिए, जिनसे गर्मियों में पशुओं के लिए चारा मिलता था। किसान जगदीश चंद ने वन विभाग से गुहार लगाई है कि उनके गांव क्वालग और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में जंगली जानवरों से निजात दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
वहीं सरयांज पंचायत प्रधान रमेश ठाकुर ने बताया कि पंचायत क्षेत्र के बुईला, मनोल, पट्टा और गवालग गांवों में जंगली सूअरों, बंदरों/लंगूरों, नीलगायों और बारहसिंगों का आतंक दिन-रात जारी है।
उन्होंने कहा: “ये जंगली जानवर दिन-रात लोगों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। अभी मक्की की फसल तैयार भी नहीं हुई थी कि इन्हें उजाड़ डाला गया। यदि यही हाल रहा तो भविष्य में किसान फसलें उगाना बंद कर देंगे।”

सांकेतिक तस्वीर
प्रधान ने कहा कि पंचायत स्तर पर एक प्रस्ताव पारित कर इस गंभीर समस्या को वन विभाग के समक्ष रखा जाएगा ताकि ग्रामीणों को राहत मिल सके।
वन विभाग का रुख -
इस मामले पर जब सम्बंधित क्षेत्र वन सुरक्षा गार्ड संजय ठाकुर से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा: “वन्य प्राणियों पर किसी का नियंत्रण नहीं होता और फसलों की सुरक्षा हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आती। हम केवल विभागीय दिशा-निर्देशों के अनुसार ही कार्यवाही करते हैं।”
साथ ही उन्होंने मीडिया को बताया कि वे बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं और आगे की जानकारी के लिए किसानों को RO कार्यालय अर्की से संपर्क करना चाहिए।
वहीं, वन मंडल अधिकारी (DFO), कुनिहार; राज कुमार शर्मा ने कहा कि अभी तक इस क्षेत्र से कोई लिखित शिकायत उन्हें प्राप्त नहीं हुई है। जैसे ही किसानों की शिकायत उनके कार्यालय में आएगी, विभागीय स्तर पर किसान हित में ठोस कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने अर्की उपमंडल के किसानों से आग्रह किया कि वे अपनी समस्याओं को लिखित में RO अर्की ऑफिस में जमा करवाएं, ताकि तुरंत कार्यवाही हो सके।
किसानों की सरकार से मांग
ग्रामीणों का कहना है कि प्रदेश सरकार को किसानों की फसलें बचाने के लिए त्वरित राहत और मुआवजा नीति लागू करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह बाघ, चीते और शेर से यदि कोई गाय, बैल, बकरी आदि मारे जाते हैं तो वन विभाग मुआवजा देता है, उसी तरह जंगली सूअर, बंदर, नीलगाय और बारहसिंगा द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने पर भी किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए। ग्रामीणों ने कहा कि अगर फसलों को मुआवजा और सुरक्षा नहीं मिली तो भविष्य में किसान मक्की की फसलें बोना ही बंद कर देंगे।

अर्की उपमंडल की यह समस्या केवल एक-दो गांवों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के किसानों की साझा पीड़ा है। किसानों की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया है और यह चिंता का विषय है कि यदि जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए तो ग्रामीण खेती छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। अब प्रदेश सरकार और वन विभाग की जिम्मेदारी है कि किसानों की मेहनत और भविष्य को बचाने के लिए स्थायी समाधान तैयार करें।