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Success Story : लाचार औरतों के आंसू लक्ष्मी के दिल पर गिरे तो खड़ा कर दिया बैंक

February 07, 2021 10:53 AM

इस शहर को ऐतिहासिक रूप से अहोम राजाओं की आखिरी राजधानी बताया जाता है। जी हां! चाय बागानों से घिरे जोरहाट की ही बात कर रहा हूं। असम का काफी खूबसूरत जिला है यह। इसी के एक गांव में लक्ष्मी बरुआ 1949 में पैदा हुईं। मगर उनके जन्म के साथ एक त्रासदी भी हमेशा के लिए जुड़ी। उन्हें इस दुनिया में लाकर मां खुद संसार छोड़ गई थीं। बिन मां की बच्ची को पिता और परिजनों ने भरपूर दुलार और स्नेह दिया, मगर मां की बराबरी भला कौन कर सकता है! लक्ष्मी के पिता बेटी की हर जरूरत का ख्याल रखते। उनकी पूरी दुनिया जैसे लक्ष्मी के इर्द-गिर्द सिमट आई थी, मगर आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।

हालात ने ख्वाहिशों से समझौता करना सिखा दिया

होश संभालते ही हालात ने लक्ष्मी को अपनी ख्वाहिशों से समझौता करना सिखा दिया। वह पढ़ने में अच्छी थीं, इसलिए पिता ने शिक्षा के सिलसिले को हर सूरत में कायम रखा। लेकिन कई चीजें किसी के वश में नहीं होतीं। जिंदगी के जिस मोड़ पर लक्ष्मी को अपने पिता की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उसी पड़ाव पर सिर से उनका साया उठ गया। पिता की आकस्मिक मौत ने लक्ष्मी की आंखों से सारे सपने छीन लिए थे। परिजनों के लिए उनका भरण-पोषण और विवाह ही अब सबसे बड़ा मसला था। जाहिर है, लक्ष्मी का कॉलेज छूटना ही था। वह 1969 का साल था। 

सुलझे हुए जीवनसाथी और मेंटोर ने किया प्रोत्साहित

परिजनों के आर्थिक हालात भी कोई बहुत खुशगवार नहीं थे, मगर उन्होंने लक्ष्मी को उनके हाल पर नहीं छोड़ा। वे उनके साथ खडे़ रहे। इन विकट स्थितियों ने लक्ष्मी को इंसान, खासकर औरतों के लिए आर्थिक सुरक्षा की अहमियत का एहसास कराया। बल्कि उन्हें भीतर से मजबूत भी बनाया। सन् 1973 में प्रभात बरुआ से शादी के बाद लक्ष्मी की जिंदगी ने नई करवट ली। प्रभात प्रगतिशील सोच के मालिक थे। लक्ष्मी के लिए तो वह सुलझे हुए जीवनसाथी और मेंटोर, दोनों साबित हुए। उन्होंने न सिर्फ उन्हें कॉलेज की अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि 1980 में जब वह जोरहाट के वाहना कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने में कामयाब हुईं, तब प्रभात ने उन्हें नौकरी करने के लिए भी प्रेरित किया। जाहिर है, इतना सच्चा और समझदार हमसफर हो, तो मंजिल कहां थकाती है।  

अकाउंट मैनेजर की नौकरी

लक्ष्मी को ‘डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक’में अकाउंट मैनेजर की नौकरी मिल गई।नौकरी के दौरान कुछ चीजें थीं, जो उन्हें भीतर तक कचोट जाती थीं। वह अक्सर देखतीं कि आस-पास के गांवों की गरीब, अशिक्षित औरतें, चाय बागानों में मजदूरी करने वाली महिलाएं घंटों कर्र्ज के लिए कतार में खामोश खड़ी रहती थीं, और जब काउंटर पर पहुंचतीं, तो उन्हें खाली हाथ लौटा दिया जाता, क्योंकि उनके पास कोई जरूरी दस्तावेज नहीं होता। लाचार औरतों का गिड़गिड़ाना, उनके आंसू लक्ष्मी के दिल पर गिरते थे। किसी को दुखद विवाह से मुक्ति के लिए मदद की दरकार होती, तो किसी को अपने बच्चों की फीस चुकानी होती। मगर लक्ष्मी बैंक के नियम-कायदे से बंधी हुई थीं, वह चाहकर भी उनकी कुछ मदद नहीं कर पा रही थीं।  

इन गरीब, अशिक्षित औरतों की पीड़ा लक्ष्मी को प्रेरित कर रही थी कि वह उनके लिए कुछ करें। आखिरकार 1983 में उन्होंने जोरहाट में ही एक महिला समिति बनाई। इस समिति के जरिए काम करते हुए उन्हें आर्थिक असुरक्षा के नए-नए रूपों का पता चला। आसपास के चाय बागानों में काम करने वाली औरतों के पास भी अपनी कोई बचत नहीं थी, क्योंकि उनके पति या घरवाले सारी रकम उनसे झटक लेते थे, और जब कभी उन्हें कोई जरूरत पड़ती, तब ऊंची दर पर स्थानीय साहूकारों से कर्ज लेने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता, क्योंकि दस्तावेजों के अभाव में बैंक उन्हें कर्ज दे नहीं सकते थे।  

रजिस्ट्रेशन के लिए आठ वर्षों तक संघर्ष

इन महिलाओं की मदद के इरादे से उन्होंने 1990 में कनकलता महिला कोऑपरेटिव बैंक शुरू किया। रजिस्ट्रेशन के लिए उन्हें आठ वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। अथॉरिटी की कम से कम 1, 000 सदस्य और आठ लाख रुपये की पूंजी की कड़ी शर्त थी। पर इरादे नेक हों, तो कारवां बन ही जाता है। घरेलू स्त्रियों ने अपनी जमा-पूंजी निकालकर इस कॉपरेटिव के शेयर खरीदे। मई, 1998 में लक्ष्मी के कॉपरेटिव बैंक का पंजीकरण हो गया और अगले ही साल उन्होंने 8, 45, 000 रुपये की पूंजी और 1, 420 सदस्य भी जुटा लिए। फिर फरवरी, 2000 में वह दिन भी आया, जब भारतीय रिजर्व बैंक का ‘कमर्शियल बैंकिंग’ संबंधी लाइसेंस लक्ष्मी के हाथों में था।  

45 हजार से अधिक खाताधारक

पिछले दो दशकों से सिर्फ महिला कर्मियों द्वारा संचालित इस बैंक में 45 हजार से अधिक खाताधारक हैं, जिनमें से ज्यादातर औरतें हैं। अब तक 8, 000 से अधिक महिलाएं और 1, 200 महिला स्वयंसेवी समूह इससे लाभ उठा चुके हैं। पिछले साल बैंक का सालाना कारोबार करीब 16 करोड़ रुपये और शुद्ध मुनाफा 30 लाख का रहा। हजारों गरीब महिलाओं की जिंदगी को सहारा देने वाली लक्ष्मी को देश ने इस वर्ष पद्मश्री से सम्मानित किया है।  

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